बारां- अपाहिज और बेसहारा गौवंश का दर्द- मानवता भी रो पड़े

बारां,  अमित जैन-  शहर की सड़कों पर बेसहारा और अपाहिज गौवंश की दयनीय स्थिति देखकर किसी की भी संवेदना रो उठे। कोटा रोड और शहर के प्रमुख चौराहों पर घायल, भूख-प्यास से तड़पते और दर्द से कराहते गौवंश असहाय पड़े हैं, मगर उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं। तेज रफ्तार वाहनों की चपेट में आकर ये बेजुबान अपाहिज हो जाते हैं, घावों से लथपथ सड़क किनारे तड़पते रहते हैं, लेकिन न कोई इलाज होता है और न ही कोई सहारा मिलता है।

सड़क दुर्घटनाओं के शिकार हो रहे गौवंश
शहर की प्रमुख सड़कों पर बेसहारा गौवंशों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इनमें से अधिकांश किसी वाहन की टक्कर से गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं। टूटे पैर, शरीर पर गहरे घाव और दर्द से कराहते ये गौवंश अक्सर कई दिनों तक उसी हालत में सड़क पर पड़े रहते हैं। कुछ को तो दोबारा किसी वाहन से टकराने का भय बना रहता है।

रात के अंधेरे में ये गौवंश सड़क पर बैठ जाते हैं, जिससे दुर्घटनाएं और भी बढ़ जाती हैं। कई बार लोग इन्हें बचाने की कोशिश करते हैं, लेकिन किसी के पास न तो साधन होते हैं और न ही कोई स्थायी समाधान।

भूख-प्यास से बेहाल, दर्द से कराहते बेजुबान
इन बेजुबानों की तकलीफ यहीं खत्म नहीं होती। शहर में भूख और प्यास से भी इनकी हालत बिगड़ रही है। पेट भरने के लिए कचरे में भोजन तलाशते ये गौवंश पॉलीथिन, कांच और जहरीला कचरा खा लेते हैं, जिससे वे बीमार हो जाते हैं। कई बार पेट में जमा कचरा उनकी मौत की वजह बन जाता है।

गर्मी के दिनों में पानी तक नसीब नहीं होता। सूखी जीभ, कराहती आंखें और टूटा शरीर… इनकी हालत देखकर भी लोग बेबस नजर आते हैं। घावों से रिसता खून, मक्खियों और कीड़ों से भरा शरीर… इनका यह दर्द देख किसी की भी आंखें नम हो जाएं।

राहगीरों की रो पड़ी संवेदना
सड़क से गुजरने वाले लोग जब इन बेजुबानों को तड़पते देखते हैं, तो कुछ देर के लिए रुकते जरूर हैं, लेकिन फिर आगे बढ़ जाते हैं। कोई रोटी डालकर चला जाता है, कोई पानी पिला देता है, मगर यह स्थायी समाधान नहीं है।

शहर की मुख्य सड़कों पर हर दिन घायल और तड़पते गौवंशों को देखकर कई लोग व्यथित हो जाते हैं। कोई इन्हें अस्पताल ले जाने की कोशिश करता है, लेकिन साधन न होने के कारण अधिकतर मामलों में ये गौवंश वहीं तड़पते रहते हैं।

प्रशासन और समाज की चुप्पी
बेसहारा और अपाहिज गौवंशों की यह स्थिति समाज और प्रशासन दोनों पर सवाल खड़े करती है। कागजों में तो गौसेवा की योजनाएं बनती हैं, लेकिन ज़मीन पर इनका कोई लाभ दिखाई नहीं देता। गौशालाओं में जगह की कमी के कारण कई बेसहारा गौवंशों को शरण नहीं मिलती। घायल गौवंशों को अस्पताल तक ले जाने के लिए कोई सरकारी वाहन उपलब्ध नहीं होता। स्थानीय लोगों की मदद से कभी-कभार इन्हें इलाज मिल पाता है, लेकिन ज्यादातर को तड़पते हुए ही दम तोड़ना पड़ता है।

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Author: Knn Media

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